Monday, October 4, 2010

उत्तराखण्ड आपदा – इन घावों को भरने में बहुत समय लगेगा

All Photos By- Kalyan Mankoti
हर साल की तरह इस साल भी उत्तराखण्ड के पर्वतीय और मैदानी इलाकों में भारी बारिश के कारण जान-माल का भारी नुकसान हुआ. 18 अगस्त को सुमगढ, जिला बागेश्वर में 18 बच्चों की स्कूल बिल्डिंग में दबने से हुई मौत की खबर ने पूरे राज्य को भारी सदमा पहुंचा, इससे उबरने से पहले ही ठीक एक महीने बाद 18 सितम्बर को अल्मोड़ा जिला मुख्यालय और उसके आसपास के इलाकों के साथ ही नैनीताल जिले के कुछ हिस्सों में बारिश भारी तबाही लेकर आयी. पिथौरागढ में मुनस्यारी तहसील का पूरा क्वीरीजीमिया गांव भूस्खलन के बाद खाली करना पड़ा. गढवाल मण्डल में हालांकि मानव जीवन का नुकसान अपेक्षाकृत कम हुआ लेकिन सम्पत्तियों का नुकसान भारी मात्रा में हुआ. इस बार की आपदा एक जगह पर केन्द्रित न होकर बड़े-छोटे रूप में सब जगह फैली हुई दिख रही है. भारी बारिश से सड़क परिवहन ऐसा ध्वस्त हुआ कि मुख्य सड़कों को खुलने में भी 2-3 महीने का समय लगने का अनुमान है.

अपने समाज में दुखी व्यक्ति की मदद करना और परिचित की खुशी को अपनी खुशी समझना हमारी मूल संस्कृति रही है. इस दैवीय आपदा के समय भी आपदा प्रभावितों की सहायता के लिये हर तरफ से हाथ उठ रहे हैं. लेकिन आपदा प्रभावितों को मुआवजा देने की सरकार की नीति पर कई सवाल उठाये जा रहे हैं. सरकार द्वारा अनुमोदित धनराशि आपदा प्रभावितों को राहत पहुंचाने के लिये नाकाफी साबित हो रही है. सरकार द्वारा चलायी जा रही आपदा राहत का एक दुखद पहलू यह है कि सरकार उन्हीं लोगों की सहायता के प्रति अधिक गम्भीर है जिनके परिवार में मानव जीवन की क्षति हुई है. अधिकांश परिवार ऐसे हैं जिनके घरों को दिन में नुकसान हुआ, जिससे इनकी और परिवार की जान तो बच गयी लेकिन घर, मवेशी, अनाज, बर्तन, कपड़े और अन्य सम्पत्ति पूर्ण रूप से मलवे में दब गयी या क्षतिग्रस्त हो गयी. ऐसे परिवारों के प्रति सरकार संवेदनशील नजर नहीं आ रही है.

पिछले सप्ताहान्त में अल्मोड़ा और उसके आसपास आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में जाकर देखने पर यह बात समझ में आयी कि सरकार ने लगभग 2 हफ्ते बाद भी ऐसे परिवारों को नजरअन्दाज किया हुआ है. क्षतिग्रस्त घर के अन्दर सभी आवश्यक सामग्री दब चुकी है और दुधारू जानवर भी खत्म हो गये हैं. अल्मोड़ा से 40 किमी दूर जूड़-कफून गांव के शेर राम ने बताया कि आपदा आने के बाद उन्हें तीन दिन तक खाना नसीब नहीं हुआ. शेर राम की बात से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे राज्य का आपदा प्रबन्धन कितना चुस्त-दुरुस्त है. गांवों के साथ-साथ कस्बों की स्थिति भी खराब है. अल्मोड़ा शहर के कई मोहल्ले भूस्खलन की चपेट में आये हैं. डिग्री कालेज के पास इन्दिरा कालोनी के कई घर अब रहने लायक नहीं रह गये हैं.

इस समय जब प्रशासन के आला अफसरों को आपदा पीड़ितों को राहत पहुंचाने में जुटना चाहिये, वो विशिष्ट लोगों के दौरों की व्यवस्था करने में जुटे हुए हैं. पहाड़ को भुला चुके पहाड़ी मूल के कई नेता भी इस बार आपदा प्रभावितों से मिलने पहुंच रहे हैं, लेकिन इनके दौरों से विपदाग्रस्त लोगों की समस्याओं का स्थायी समाधान होगा या ये दौरे सिर्फ खानापूर्ति में सिमट जायेंगे, यह भविष्य में देखा जायेगा.




आपदा के आधे महीने बाद भी पुनर्वास और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने की योजनाओं के बारे में काम शुरू नहीं हो पाया है. अब जब बारिश का कहर थम चुका है और सरकार को केन्द्र से आपदा राहत के लिये धन भी आबन्टित हो चुका है, इस समय भी पहाड़ में कुछ ऐसे लोग सरकार की नजरों में आने से बच गये हैं, जिनका सर्वस्व प्रकृति के इस कोप ने खाक कर दिया है. उत्तराखण्ड के सभी लोगों के मन में यह आशंका है कि केन्द्र से मिली धनराशि का सदुपयोग हो भी पायेगा या नहीं. अल्मोड़ा के लोगों का मानना है कि सरकार बारिश खत्म होने के कुछ समय बाद इस विपदा को भी वैसे ही भूल जायेगी जैसे वो गरमी खत्म होते ही पेयजल की समस्या को भूल जाती है.

आपदा प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने के बाद हमें यह महसूस हो रहा है कि इन आपदा प्रभावित लोगों की सहायता के लिये उत्तराखण्ड के सभी प्रवासियों और निवासियों को आगे आना चाहिये और उन्हें इस बात का अहसास कराना चाहिये कि सभी लोग उनके साथ है. सरकार की दिशा और नीति देखकर तो यही लग रहा है कि उत्तराखण्ड और आपदाओं का साथ बहुत लम्बा रहेगा. भगवान न करे अगला नम्बर हमारा या किसी परिचित का होगा तो तब ये ही लोग हमारी मदद करेंगे, जिनकी मदद हम अभी कर रहे हैं. सरकार और अफसर तो शायद तब भी विशिष्ट लोगों के दौरों को सुगम बनाने में व्यस्त होंगे.


प्रवासी युवाओं की संस्था "क्रिएटिव उत्तराखण्ड - म्यर पहाड़" भी उत्तराखण्ड के आपदा प्रभावितों को राहत सामग्री पहुंचाने का प्रयास कर रहा है. ज्यादा जानकारी के लिए यहां जाएं.

2 comments:

Barthwal said...

जी हेम जी आज की समस्या पर आपका आंखोदेखा हाल.. और सही कहा आपने ......कि सरकार बारिश खत्म होने के कुछ समय बाद इस विपदा को भी वैसे ही भूल जायेगी जैसे वो गरमी खत्म होते ही पेयजल की समस्या को भूल जाती है.
यही होता आया है शाय्द यही होगा..

Uttaranchali mushafir said...

हेम दा बहुत सराह्निये कार्य किया है आपने और देवभूमि मैं आई दैवीय आपदा की जानकारी सब लोगों तक पहुंचाई,और लोगों के दुःख दर्द को समझा !