Thursday, September 30, 2010

कामरेड पी. सी. जोशी – भारत में कम्युनिस्ट पार्टी के शिल्पी


उत्तराखण्ड में समय-समय पर कई ऐसे व्यक्तित्व पैदा हुए हैं जिन्होंने राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. अल्मोड़ा के श्री पूरन चन्द्र जोशी जिन्हें भारतीय इतिहास में पी सी जोशी के नाम से जाना जाता है, एक प्रखर स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, विचारक, लेखक, पत्रकार, संगठनकर्ता और राजनेता थे. पी सी जोशी का जन्म 14 अप्रैल 1907 को अल्मोड़ा में पण्डित हर नन्दन जोशी जी के घर पर हुआ. उनकी माता का नाम श्रीमती मालती देवी था. अल्पावस्था में ही जोशी गांधीजी के स्वराज आन्दोलन से प्रभावित होकर कांग्रेस पार्टी की राजनैतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे थे. उन्होंने हापुड़ के राजकीय विद्यालय से 1920 में मैट्रिक की परीक्षा पास की.



पूरन ने 1922 में अल्मोड़ा के राजकीय इन्टर कालेज से इन्टरमीडियेट की परीक्षा पास की . संस्कृत विषय में उन्हें विशेष योग्यता के लिये स्वर्ण पदक प्रदान किया गया था. आगे की पढाई के लिये उन्हें इलाहाबाद भेजा गया जहां उन्होंने अंग्रेजी, इतिहास और अर्थशास्त्र विषयों में स्नातक किया और1928 में एम. ए. करने के बाद अगले साल इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एल.एल.बी. भी पूरी की.

इलाहाबाद में पढाई के दौरान पूरन मोतीलाल नेहरू और मदन मोहन मालवीय जैसे अग्रणी नेताओं के सम्पर्क में आये और जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में ‘इलाहाबाद यूथ लीग’ नामक संगठन में शामिल हो गये. 1927 में जोशी को ब्रुसेल्स और सोवियत संघ के दौरे करने का मौका मिला जहां उन्हें आन्दोलनों में किसानों और मजदूरों के योगदान को देखने समझने का मौका मिला. 1928 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के बाद कांग्रेस की अस्पष्ट नीतियों से खिन्न होकर उनका झुकाव कम्युनिस्ट विचार धारा की तरफ होने लगा. 1928 में ही पीसी जोशी Peasants’and Workers’Party की उत्तर प्रदेश शाखा के संयुक्त सचिव नियुक्त हुए. 1929 में मजदूरों की देशव्यापी हड़ताल को असफल बनाने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने कामगार संगठनों के नेताओं को गिरफ्तार करके जेलों में डाल दिया. पीसी जोशी को भी 20 मार्च 1929 को इलाहाबाद के हालैण्ड हास्टल से गिरफ्तार कर लिया गया. सभी वरिष्ट नेताओं के बीच 22 साल के पीसी जोशी सबसे कम आयु के थे. 31 मजदूर नेताओं पर मेरठ में एतिहासिक मुकदमा चलाया गया. मजदूरों के हक-हकूकों की मांग को सभी नेताओं ने तार्किक तरीके से अदालत के सामने रखा, तत्कालीन समाचार पत्रों ने इस मुकदमे को भरपूर कवरेज दी जिससे पूंजीवादी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नेताओं की दलीलें आम जनता तक पहुंचने लगी. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने भी मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक आठ सदस्यीय “डिफेन्स कमिटी” बनाकर इन मजदूर नेताओं को कानूनी मदद दी थी. महात्मा गांधी ने भी जेल में जाकर इन मजदूर नेताओं से मुलाकात की. इस तरह मेरठ काण्ड के बहाने विभिन्न विचारधाराओं के राष्ट्रीय नेताओं को एकजुट होने का मौका मिला. मेरठ के एडिशनल जज के सामने पी.सी. जोशी ने निम्न बयान दिया-

“My name is Puran Chand Joshi; my father’s name is Pandit Har Nandan Joshi. I am by caste – No cast. 24 years of age, by profession student; my hometown is at Almora, Police Station, Almora district, Almora; I reside at Almora.”

जोशी और उनके साथियों ने मेरठ मुकदमे में अपनी दलीलों के माध्यम से औपनिवेशिक सरकार की साम्राज्यवादी सोच की सच्चाई को उजागर किया. इस मुकदमे के बाद जोशी एक बेहतरीन लेखक के रूप में उभर कर सामने आये. राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की नजर में आने के बाद स्पष्ट सोच और अद्वितीय संगठन क्षमता के बल पर 28 साल की अवस्था में जोशी को आल इण्डिया कम्युनिस्ट पार्टी का अखिल भारतीय संगठन खड़ा करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने का मौका मिला. जून1937 में पीसी जोशी को CPI का जनरल सेक्रेटरी चुना गया , वो इस पद पर 1948 तक बने रहे. पी.सी. जोशी के कुशल नेतृत्व में पार्टी ने अभूतपूर्व उपलब्धियां प्राप्त की. जोशी के कार्यकाल में देश के विख्यात संस्कृतिकर्मी, लेखक, शायर, लोक कलाकार, पत्रकार और बुद्धिजीवी CPI में शामिल हुए. जोशी ने देश के विभिन्न हिस्सों से विशुद्ध लोक कलाकारों को ससम्मान पार्टी की मुख्यधारा में शामिल किया. लोक संस्कृतियों में छिपे एकजुटता और सामाजिक सौहार्द के मूल तत्व को समझ कर उन्होंने इसे मंच पर प्रदर्शित करने के लिये लोककलाकारों को प्रोत्साहित किया. ईप्टा “Indian Peoples Theatre Association”जैसे महत्वपूर्ण जनवादी रंगमंच समूह को तैयार करने में जोशी का विशेष योगदान था. जोशी की कुशल संगठनक्षमता और मार्गदर्शन के फलस्वरूप Progressive Writer’s Association (PWA) से कई लेखक जुड़े, जिन्होंने पूरे समाज को एक नयी दिशा दी. पी.सी. जोशी अलग-अलग धड़ों में काम कर रहे कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों को एकजुट करने में सफल रहे. उनके द्वारा सम्पादित National Front नामक समाचार पत्र कामगारों, किसानों , युवा छात्रों और स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के लिये एक प्रमुख पत्र बनकर उभरा.

1942 के बाद “भारतछोडो आन्दोलन”में शामिल न होने के कारण कम्यूनिस्ट पार्टियों को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था, इस समय जोशी अपने दल के लोगों को के साथ “बंगाल के अकाल”से जूझ रहे लोगों की सेवा में जी-जान से जुट गये. बंगाल में भुखमरी के कारण सड़कों पर लाखों लोग तड़पते हुए दम तोड़ रहे थे. दुर्भिक्ष के कारण हजारों औरतें अपनी देह बेचने को मजबूर होने लगीं तो जोशी के सहयोग से महिलाओं का एक सशक्त संगठन खड़ा हुआ, जिसका नाम था महिला आत्म रक्षा समिति (MARS). कामरेड पी.सी. जोशी की प्रेरणा से कम्युनिस्ट दलों ने “भूखा है बंगाल”नाम से एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया. उन्होंने स्वयं 6 हफ़्तों तक बंगाल में सर्वाधिक अकालग्रस्त इलाकों में रहकर राहत शिविर संचालित किये. जोशी जी द्वारा बंगाल दुर्भिक्ष पर एक पर्चा निकाला, जिसका शीर्षक था- Who Lives if Bengal Dies? इस पर्चे के द्वारा उन्होंने जमाखोरों औरपूंजीपतियों को लताड़ा और संकट की इस घड़ी में देश भर के हिन्दू-मुस्लिम भाइयों से एकजुट होने की अपील की. जोशी के अथक प्रयासों के फलस्वरूप बंगाल का अकाल एक राष्ट्रीय समस्या के रूप में सामने आया , जोशी ने अन्य दलों के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को भी अपनी इस मुहिम में शामिल किया. बंगाल के लोगों का दुख-दर्द देशवासियों के सामने रखने के लिये और आर्थिक मदद जुटाने के लिये कामरेड जोशी ने उस समय के प्रतिष्टित रंगमंच कलाकारों को एकजुट किया और “अन्तिम अभिलाषा” नाम का एक प्रसिद्ध नाटक तैयार किया गया. इस नाटक के माध्यम से बंगाल के लोगों की पीड़ा को देखने के बाद देश भर के लोगों ने दिल खोल कर दान दिया. इस पैसे से कम्युनिस्ट पार्टी ने बंगाल में 700 सामूहिक रसोइयां संचालित कीं, जिनमें प्रतिदिन एक लाख से अधिक लोग भोजन करते थे. दाने-दाने को तड़प रहे बंगाल के गरीब लोगों के लिये इससे बड़ी राहत और क्या हो सकती थी!

जल्दी ही कामरेड पी.सी. जोशी पूरे देश के कम्युनिस्ट आन्दोलन के अग्रणी और लोकप्रिय नेता बन गये. देशभर में जहां भी किसानों, कामगारों, छात्रों औरमहिलाओं के संघर्ष उपजे कामरेड जोशी उसे समर्थन और ऊर्जा देने के लिये वहां उपस्थित थे. एक तरफ उनके कुशल मार्गदर्शन में ईप्टा “Indian Peoples Theatre Association” देशभर की लोककलाओं को मंच पर लाकर एक प्रकार से सांस्कृतिक क्रान्ति फैलाने का काम कर रही थी, वहीं National Front, People’s War और People’s Age जैसे मुखपत्र देशभर के लोगों को राष्ट्रवाद और कम्युनिज्म के विचारों से जोड़ रही थीं. जोशी ने पार्टी की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने के लिये पूरे भारत की यात्रा की औरसमाज के अन्तिम व्यक्ति के साथ बैठकर उसकी जीवन-शैली, दिनचर्या व कठिनाइयों को आत्मसात किया. आजादी के संघर्ष के दौरान ही कामरेड पी.सी. जोशी मुस्लिम लीग की देश विघटन की मंशा भांप चुके थे. जोशी ने उसी दौर में सभी प्रमुख नेताओं के सामने एक ऐसी राष्ट्रीय सरकार का प्रस्ताव रखा जिसमें हिन्दू महासभा -मुस्लिम लीग मुख्य घटक हों और कांग्रेस व-कम्युनिस्ट पार्टी उसे बाहर से समर्थन दें. यदि जोशी के इस सुझाव पर गम्भीरता से विचार किया जाता तो शायद देश विभाजन से बच जाता. 1947 में जैसे ही भारत स्वतन्त्र हुआ, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के अग्रणी नेताओं के बीच गम्भीर मतभेद पैदा हो गये. कामरेड पी. सी. जोशी ने भारत की स्वतन्त्रता का स्वागत किया लेकिन पार्टी के अन्य वरिष्ट नेताओं ने देश की आजादी को “झूठी आजादी” माना और कुछ विदेशी कम्युनिस्टों के सुझावों के अनुसार जोशी को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. जोशी पर यह भी आरोप लगाया गया कि वो कांग्रेस के वरिष्टतम नेताओं के करीबी हैं इसलिये भारत में सशस्त्र क्रान्ति को अपना समर्थन नहीं दे रहे हैं. जोशी ने आजादी के बाद देश में भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप कम्युनिज्म की नयी विचारधारा विकसित करने की भरसक कोशिश की लेकिन पोलित ब्यूरो के अन्य सदस्य सोवियत संघ और चीन के कम्युनिस्ट नेताओं के प्रभाव में आ चुके थे और जोशी उसी पार्टी में अकेले पड़ते गये जिसकी सदस्यता उनके ही प्रयासों से अप्रत्याशित तरीके से 50 से 90,000 तकपहुंची थी. लेकिन कई उतार चढावों के बावजूद जोशी आजन्म अपनी पार्टी के प्रति समर्पित रहे. उन्होंने कभी भी अलग पार्टी या पार्टी के अन्दर अलग गुट बनाने की कोशिश नहीं की. लेकिन जोशी के जाने से CPI को मिलने वाले जनसमर्थन में भारी कमी आई और पार्टी की सदस्यता दो सालों में ही आश्चर्यजनक रूप से 90,000 से 9,000 पर आ पहुंची. बाद के वर्षों में कई वरिष्ट कम्युनिस्ट नेताओं ने भी इस बात को स्वीकार किया कि जोशी ने भारत की स्वतन्त्रता का जो आंकलन किया था पार्टी को उस पर गम्भीरता से मंथनकरना चाहिये था. जोशी को 1951 में पुन: पार्टी में वापस ले लिया गया लेकिन उसके बाद जोशी स्वयं पार्टी के शक्ति केन्द्र से दूर बने रहे. जोशी ने बंगाल की मशहूर विख्यात नेत्री कल्पना दत्त से शादी की.

राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखण्ड राज्य की मांग को उठाने वाले लोगों में कामरेड पी. सी. जोशी भी थे. उनका मानना था कि विशिष्ट भौगोलिक परिस्थिति औरअलग संस्कृति के लोगों के लिये पृथक राज्य होना ही चाहिये. राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़े व्यक्तित्व में उभर चुके कामरेड जोशी को पहाड़ों से बड़ा लगा व था. वो समय-समय पर अल्मोड़ा आते थे और जिले के गांवों की पैदल यात्रा करते थे. ऐसी ही एक पैदल यात्रा के दौरान 1955 में एक शाम पी.सी. जोशी अल्मोड़ा के नौगांव में कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बिष्ट के घर पर रुके उनके दल में मोहन उप्रेती भी थे जो अल्मोड़ा शहर में रहते थे और उत्तराखण्ड की लोककलाओं के बारे में अनभिज्ञ थे. उस शाम रीठागाड़ के लोककलाकार मोहन सिंह बोरा (मोहन सिंह रीठागाड़ी) ने इन लोगों को कुमाऊं की पारम्परिक लोककथाएं और लोक गीतों से मन्त्रमुग्ध कर दिया. मोहन उप्रेती का पहली बार कुमाऊं की वैभवशाली लोकसंगीत से परिचय हुआ. रीठागाड़ी से प्रभावित होकर उप्रेती ने उत्तराखण्ड के लोकसंगीत को ही अपने जीवन का लक्ष्य चुना, आगे चलकर मोहन उप्रेती उत्तराखण्ड की पर्वतीय लोकपरम्पराओं के महान संवाहक बने और उन्होंने इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया. हृदय की बीमारी के कारण कई अधूरे सपने दिल में लेकर उत्तराखण्ड का यह सच्चा सपूत 9 नवम्बर 1980 को इस दुनिया से चला गया. एक आदर्श कम्युनिस्ट, सच्चे देशभक्त, समाजसेवक, पत्रकार और स्वतन्त्रतास सेनानी के साथ-साथ जोशी के कई और पहलू भी थे, जिनसे दुनिया का परिचय होना शेष है.

Reference : P. C. Joshi – A Biography (Writer – Gargi Chakravartty, Publisher – National Book Trust)

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