Tuesday, March 25, 2008

होली पर कुमाऊँनी बोली में कविता


होलि को धमाल थामी सकी ग्यो... ये साल 'इंटरनेट' में लै खूब लेखि ग्यो पहाड़ी होली क बार में…. काकेश ज्यू और तरुण ज्यू का Blogs का साथै-साथ हमुन लै ‘मेरा पहाड़’ क फोरम पर कुमाऊंनी होली संबन्धित कुछ जानकारी पेश कर्यांन. यां प्रस्तुत छ कुमाऊंनी भाषा में होलिक ऊपर श्री कीर्तिबल्लभ शक्टा जी न कि एक कविता..

कुमाऊंनी भाषा कि वार्षिक पत्रिका
'दुदबोलि' बटि साभार……..

फागुन मास अहो यसु सुन्दर, मस्त बयार सबै जग छै रौ.
लोगुन का मन मोद अजीब, सबै मिलि बै शुभ फाग रची रौ.
कृष्ण की याद हिया बिच में बसि गै छ अरे भलु रंग समीरौ.
होलिन का दिन रंग अबीर गुलाल परस्पर खूब रंगीरौ.

आज कुमूँ बिच रंग भरौ, सब गांव सुखी जनता छरि रै हो.
ढोल-निशाण नगाड़् का साथ, सबै जन होलि हुल्यार भयै हो.
रंग कि गागर हाथ थमै ,भउजी सब देवरा ओज चलै हो.
आहु लला अब फागुन में, हमरो जियरा अनुलाय रयो हो.


कुमाऊंनी-गढवाली बोलि में और ले लेख ये ब्लोग में उपलब्ध करुनाक लिजि हमोर प्रयास अघिल कै लै जारी रौल....

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